गंगा हमारी
भव ताप हारक, पाप नाशक, धरा उतरी गंग।
निर्मल प्रवाहित, प्रेम सरसित, करे मन जल चंग।।
सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग।
शिव हरि उपासक, साधु साधक, जपे सुर मुनि संग।१।
…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 30, 2014 at 10:30pm — 13 Comments
सारे नेता खेलते
सारे नेता खेलते, आज चुनावी खेल।
सत्ता के इस रूप में, द्रुपद सुता का मेल।।
द्रुपद सुता का मेल, पांडु सुत लगती जनता।
नेता शकुनी दाँव, चाल वादों की चलता।
लोक लुभावन खूब, लगाते ये हैं नारे।
चौसर बिछी बिसात, खेलते नेता सारे।१।
हांथी तीर कमान तो,कहीं हाँथ का चिन्ह।
कमल घडी औ साइकिल,फूल पत्तियाँ भिन्न।।
फूल पत्तियाँ भिन्न,दराती कहीं हथोडा।
झाड़ू रही बुहार,उगा सूरज फिर थोडा।।
देख चुनावी रंग, ढंग अपनाता साथी।
मर्कट…
Added by Satyanarayan Singh on April 29, 2014 at 7:30am — 9 Comments
मनोरम छंद
(संक्षिप्त विधान : मनोरम छंद चार पक्तियों या पदों का वर्णिक छंद है. जिसके प्रत्येक पद में चार सगण और अंत में दो लघु वर्ण / अक्षर का विधान हैं।)
लगती छबि मीत !
लगती छबि मीत मुझे मन भावन।
मन चंद चकोर समान लुभावन।।
मन प्रीत रिसे सुख पाय सुहावन।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 24, 2014 at 10:30pm — 12 Comments
याद तेरी आविनाशी!
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मिलन तुम्हारा बारहमासी
कभी लगा ना उबासी
यादें तव मन मंदिर जग गयी
अलखन जगे जिमि काशी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
संग तुम्हारा था मधुमासी
मन ना छायी उदासी
चाँद सितारों में जा बस गयी
मधुर हँसी की उजासी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मेरी दुनिया प्रेम पियासी
रसमयी…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 22, 2014 at 11:07pm — 14 Comments
भारत हमारा
(कामरूप छंद)
भारत हमारा, देश न्यारा, सृष्टि का उपहार।
तहजीब अपनी, गंग जमुनी, नाज जिसपर यार।।
सीख दे ममता, और समता, कर्म गीता सार ।
जनतंत्र आगर, विश्व नागर,…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 21, 2014 at 10:30pm — 15 Comments
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