For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Munish tanha's Blog – April 2016 Archive (6)

इस तरह इक औ नया रिश्ता यहाँ बनता गया

2122  2122  2122  212

इस तरह इक औ नया रिश्ता यहाँ बनता गया

आप हम से ना मिले औ दिल गरां बनता गया

 

दिल से दिल मिलने लगे जब तो जहाँ बनता गया

प्यार से भरपूर रोशन आशियाँ बनता गया

 

मिल फकीरों की दुआ से फायदा ये है हुआ

घर मेरा भी धीरे - धीरे आस्तां बनता गया

 

मैं पलटने जब चला किस्मत तो खाली हाथ था

मेहनत के साथ फिर तो कारवां बनता गया

 

रोज कुछ बाजार से लाने की आदत बन गयी

और फिर तो घर में मेरे…

Continue

Added by munish tanha on April 28, 2016 at 9:00am — 5 Comments

ग़ज़ल

1222-1222-1222-1222 

दिवाना आप का होकर फिरे वो यार बरसों से

लिए फिरता है दिल में वो तो तेरा प्यार बरसों से

हुआ है ज़िक्र महफ़िल में उसी की बात का लेकिन

बना रहता है वो मजनू करे दीदार बरसों से



अदालत ये अनोखी है जहाँ पे झूठ चलता है

हुए कैदी मिली फांसी जो थे सरदार बरसों से



जरा दिल की सुनो तो जी बड़ा मासूम भोला है

पड़ा धोखे में जाकर ये लुटा घर बार बरसों से



मेरे मौला सफर में हूँ अता कर फ़िक्र ना मुझको

दे वो ढूँढा…

Continue

Added by munish tanha on April 25, 2016 at 10:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल

1222 -1222-1222-1222

उन्हें ढूंढे मेरी ऑंखें बनी बीमार बरसों से

निकलता ही नहीं दिल से मेरा दिलदार बरसों से

नहीं काबू रहा ये दिल, तेरी उल्फ़त का जादू है 

धड़कता है मचल कर ये मेरी सरकार बरसों से

किया है वायदा उसने कि अच्छे दिन मैं लाऊंगा

तभी विश्वास से जनता है बैठी यार बरसों से

नहीं झुकना नहीं गिरना कसम तुमको है भारत की

हिमालय आज है मांगे दिया जो प्यार बरसों से

वही धोखा है फितरत में कि तौबाजिस से की…

Continue

Added by munish tanha on April 23, 2016 at 10:30am — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल
जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
मुनीष 'तन्हा'...नादौन..
9882892447

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 7 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल
जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
मुनीष 'तन्हा'...नादौन..
9882892447

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 1 Comment

ग़ज़ल (जख्म फिर से हरा हो गया)

जख्म फिर से हरा हो गया

दर्द -ए -दिल आइना हो गया

.

याद ऐसा किया देख कर

सोच के बाबरा हो गया

.

काम के नाम ने चोट की

दिल बचा दिल जला हो गया

.

नींद का आँख से रूठना

रोज़ का सिलसिला हो गया

.

फीस में छूट थी जो मिली

लाडला फिर बड़ा हो गया

.

दाद दो तुम जरा इसलिए

गिर के वो खड़ा हो गया

.

खेल की पोल थी जब खुली

फिर मज़ा किरकिरा हो गया

.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

मुनीष…

Continue

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:30pm — 3 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service