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Munish tanha's Blog – April 2016 Archive (6)

इस तरह इक औ नया रिश्ता यहाँ बनता गया

2122  2122  2122  212

इस तरह इक औ नया रिश्ता यहाँ बनता गया

आप हम से ना मिले औ दिल गरां बनता गया

 

दिल से दिल मिलने लगे जब तो जहाँ बनता गया

प्यार से भरपूर रोशन आशियाँ बनता गया

 

मिल फकीरों की दुआ से फायदा ये है हुआ

घर मेरा भी धीरे - धीरे आस्तां बनता गया

 

मैं पलटने जब चला किस्मत तो खाली हाथ था

मेहनत के साथ फिर तो कारवां बनता गया

 

रोज कुछ बाजार से लाने की आदत बन गयी

और फिर तो घर में मेरे…

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Added by munish tanha on April 28, 2016 at 9:00am — 5 Comments

ग़ज़ल

1222-1222-1222-1222 

दिवाना आप का होकर फिरे वो यार बरसों से

लिए फिरता है दिल में वो तो तेरा प्यार बरसों से

हुआ है ज़िक्र महफ़िल में उसी की बात का लेकिन

बना रहता है वो मजनू करे दीदार बरसों से



अदालत ये अनोखी है जहाँ पे झूठ चलता है

हुए कैदी मिली फांसी जो थे सरदार बरसों से



जरा दिल की सुनो तो जी बड़ा मासूम भोला है

पड़ा धोखे में जाकर ये लुटा घर बार बरसों से



मेरे मौला सफर में हूँ अता कर फ़िक्र ना मुझको

दे वो ढूँढा…

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Added by munish tanha on April 25, 2016 at 10:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल

1222 -1222-1222-1222

उन्हें ढूंढे मेरी ऑंखें बनी बीमार बरसों से

निकलता ही नहीं दिल से मेरा दिलदार बरसों से

नहीं काबू रहा ये दिल, तेरी उल्फ़त का जादू है 

धड़कता है मचल कर ये मेरी सरकार बरसों से

किया है वायदा उसने कि अच्छे दिन मैं लाऊंगा

तभी विश्वास से जनता है बैठी यार बरसों से

नहीं झुकना नहीं गिरना कसम तुमको है भारत की

हिमालय आज है मांगे दिया जो प्यार बरसों से

वही धोखा है फितरत में कि तौबाजिस से की…

Continue

Added by munish tanha on April 23, 2016 at 10:30am — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल
जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
मुनीष 'तन्हा'...नादौन..
9882892447

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 7 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल
जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
मुनीष 'तन्हा'...नादौन..
9882892447

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 1 Comment

ग़ज़ल (जख्म फिर से हरा हो गया)

जख्म फिर से हरा हो गया

दर्द -ए -दिल आइना हो गया

.

याद ऐसा किया देख कर

सोच के बाबरा हो गया

.

काम के नाम ने चोट की

दिल बचा दिल जला हो गया

.

नींद का आँख से रूठना

रोज़ का सिलसिला हो गया

.

फीस में छूट थी जो मिली

लाडला फिर बड़ा हो गया

.

दाद दो तुम जरा इसलिए

गिर के वो खड़ा हो गया

.

खेल की पोल थी जब खुली

फिर मज़ा किरकिरा हो गया

.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

मुनीष…

Continue

Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:30pm — 3 Comments

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