एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,
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(१) मदिरा सवैया =
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मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!
भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!
त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ उतिरात चली !!
आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!
(२) मदिरा सवैया =
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भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 18, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
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