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नाथ सोनांचली's Blog – April 2020 Archive (3)

कोरोना पर छप्पय छंद में कुछ रचनाएँ

(सूत्र रोला + उल्लाला = छप्पय छंद)



लेकर लाखों पाँव, एक आया संहारी

चुप सारे दरवेश, पादरी सन्त पुजारी

जीवन गति अवरूद्ध, क्रुद्ध हों ईश्वर जैसे

नहीं किसी को ज्ञान, कटे यह विपदा कैसे

दिखे नहीं उम्मीद अब, मंदिर मस्जिद धाम से

आज सभी भयभीत हैं, कोरोना के नाम से।।1



जिव्हा का कुछ स्वाद, पड़ा हम सब पर भारी

खाया जो आहार, उसी ने दी बीमारी

पर अपना क्या दोष, चीन यह समझ न पाया

खाकर कुत्ता गिद्ध, भयंकर रोग बुलाया।।

जिससे जग गति थम गई, डर फैला… Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 27, 2020 at 6:24am — 6 Comments

विरोध पर पञ्चचामर छंद में रचना

पञ्चचामर छंद

सूत्र : जगण + रगण + जगण + रगण + गुरु

शरीर लोकतन्त्र तो विरोध एक वस्त्र है

विरोध एक नाम है विरोध अस्त्र शस्त्र है

न अंधकार हो कहीं विरोध वो मशाल है

विरोध एक आग है विरोध क्रांति भाल है।।1

विरोध कीजिए भले, विकास को न रोकिये

विपक्ष पक्ष साथ हो, तुरन्त आप टोकिये

कभी विरोध नाम से यहाँ न तोड़ फोड़ हो

विरोध हो विरोध सा, विरोध में न होड़ हो।।2

अनीति या कुरीति का सदा विरोध कीजिए

भविष्य…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2020 at 11:05am — 4 Comments

पिता पर मत्त गयंद छंद में एक रचना

मत्त गयंद छंद

हाथ रखा जिसने सिर पे वह जीवन सम्बल शक्ति पिता है

प्रेम प्रशासन औ अनुशासन प्यार दुलार विभक्ति पिता है

रीढ़ झुकी उसके तन की पर वज्र दधीचि प्रसक्ति पिता है

तीर्थ बसें जग के जिसमें सब पूजित वो इक व्यक्ति पिता है।।1

खार बिछावन हो अपना सुत सेज रखे पर फूल पिता है

पुत्र हजार करे गलती पर माफ़ करे सब भूल पिता है

होकर आज बड़ा सुत जो कुछ है उसका सब मूल पिता है

पूत कपूत सपूत बने, बनता न कभी प्रतिकूल पिता है।।2

शौक सभी…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 23, 2020 at 8:30am — 7 Comments

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