गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
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रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ
राहु -केतु से कटे भी
दंभ लिए फिरता हूँ
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चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2012 at 9:24pm — 16 Comments
जंग से जमीन में
घाव बहुत होते हैं
जख्म गर भरे भी तो
रोम-रोम रोते हैं !
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इन्सां ने इन्सां को
इन्सां सा प्यार दिया
स्वर्ग धरा लाये आज …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments
दूर क्षितिज छाये है लाली
पक्षी-पर -ना रुकता देखो कैसे उड़ता जाता !!
नीचे -सागर विस्तृत कितना पानी -पानी
माझी-नौका -तूफाँ -लड़ते फिर पतवार चलाता !!
मंजिल कितनी दूर -न जाने -पीता पानी
राही पल -पल जोश बढ़ाये डग तो भरता जाता !!
पर्वत नाले पार किये बढ़ जाती धरती
कहीं छुएगी आसमान को साहस बढ़ता जाता !!
बीज दबा है बोझ से फिर भी
टेढ़ी - मेढ़ी राह धरे दम भरते निकला आता !!
अपनी मंजिल सब पाए जब आस बंधी
हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !
एक आँख…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 5:49pm — 4 Comments
अहसास
श्वेत वसन में लिपटा जीवन
जन गण का सम्मान लिए !
चूसें रक्त सदा वे विचरें
कानून न उन पर हाथ धरे !!
भले दीखते ऊपर ही चंगे
जब मन को साफ रखे ना !…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
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