(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )
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मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है
उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है
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किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर
ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है
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किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई
जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 13, 2019 at 1:00am — 3 Comments
मौज ख़ुद आपको साहिल पे लगाने से रही
और क़ुदरत भी कोई जादू दिखाने से रही
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हौसला आपका दे साथ करम हो रब का
फिर किसी सिम्त बला कोई सताने से रही
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हो सके जितना हक़ीक़त ये समझ लो सारे
मौत मर्ज़ी से कभी आपकी आने से रही
***
इम्तिहाँ रोज़ ही देने हैं यहाँ जीने को
रोने धोने से तरस ज़िंदगी खाने से रही
***
हो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
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