कुछ नहीं बिगाड़ सकी,
मेरा,
सिकंदर की तलवार|
हाँ,झेला है मैंने –
सेल्युकस की रार|
नादिरशाही तलवारों की…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:30pm — 9 Comments
पुनः लुंठन हो रहा चुपचाप हैं हम|
अक्षमाला पर मरण के जाप हैं हम|
चिर विकेन्द्रीकृत हुई केन्द्रीय सत्ता,
नव्य युग, प्राचीनता के सांप हैं हम|
…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 10:30am — 10 Comments
कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 10:30pm — 8 Comments
दीनो धरम,ईमान के हाइल हैं यहाँ पर|
मैं इल्म किसे दूँ,सभी जाहिल हैं यहाँ पर|
.
नादान बशर रो रहा जिस शख्स के आगे,
वह शख्स कहीं और है,गाफिल है यहाँ…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
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