अटल नियम है सृष्टि की, देखें आंखे खोल ।
प्राणी प्राणी एक है, आदमी पिटे ढोल ।।
इंसानी संबंध में, अब आ रही दरार ।
साखा अपने मूल से, करते जो तकरार ।।
खग-मृग पक्षी पेड़ के, होते अपने वंश ।
तोड़ रहे परिवार को, इंशा देते दंश ।।
कई जाति अरू वर्ण के, फूल खिले है बाग ।
मिलकर सब पैदा करे, इक नवीन अनुराग ।।
वजूद बगिया के बचे, हो यदि नाना फूल ।
सब अपने में खास है, सबको सभी कबूल ।।
पत्ते छोड़े पेड़ जो, हो…
ContinueAdded by रमेश कुमार चौहान on April 25, 2015 at 2:54pm — 6 Comments
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