नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |
उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||
नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |
मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||
क्षुधा तृप्त करता…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments
चक्र घंटा शूल मूसल, धर धनुष अरु बान,
शंख साजे हाथ गौरी, शीत चन्द्र समान |
शुंभ दलना मात शारद, सृष्टि जननी जान,
है नमन माता चरण में, मात दें वरदान ||
कर कमल अरु अक्षमाला, विश्व ध्यावे मात, …
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 7:00am — 13 Comments
ढाक अमलतास पे, आ गयी बहार देखो,
सेमर भी कुसुमित, फाग का महीना है |
सारे रंग लाल-लाल, फूलों पर दिखाई दें,
कुहु-कुहू कोयल की, राग का महीना है |
सूरज का ताप तन, बदन झुलसायेगा,
तपन दहन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
बीते इसके साथ में, माह दिवस अरु साल,
छंद ‘चित्र से काव्य तक’, लगता बहुत कमाल,
लगता बहुत कमाल, गजब के छंद सुनाता,
छ्न्दोत्सव आगाज, महोत्सव सबको भाता,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 1, 2013 at 8:08am — 13 Comments
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