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Hariom Shrivastava's Blog – April 2019 Archive (4)

कुण्डलिया छंद-

1-

नेता आपस में लड़ें, रोज जुबानी जंग।

मर्यादाएँ हो रहीं, इस चुनाव में भंग।।

इस चुनाव में भंग, सभी ने गरिमा खोई।

फैलाकर उन्माद, परस्पर नफरत बोई।।

जनता का इस बार, बनेगा वही चहेता।

जो कर सके विकास, चाहिए ऐसा नेता।।

2-

बातें बेसिरपैर कीं, नेता करते रोज।

मर्यादाएँ तोड़कर, दिखलाते हैं ओज।।

दिखलाते हैं ओज, मंच से देते गाली।

खुद की ठोकें पीठ,बजावें खुद ही ताली।।

संसद में जो लोग, चलाते मुक्के लातें।

गरिमा के विपरीत, वही करते हैं…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on April 19, 2019 at 10:00am — 4 Comments

कुण्डलिया छंद-

ढलती जाती उम्र में, डगमग होती नाव।

कभी-कभी नैराश्य के, आ जाते हैं भाव।।

आ जाते हैं भाव, और दुख होता भारी।

लगने लगती व्यर्थ, तभी यह दुनियादारी।।

जीर्णशीर्ण यह नाव,चले हिचकोले खाती।

घिरता है अवसाद, उम्र जब ढलती जाती।।

2-

माला फेरी उम्रभर, तीरथ किए हजार।

काम क्रोध मद मोह से, पाया कभी न पार।।

पाया कभी न पार, जिन्दगी व्यर्थ गँवाई।

बीत गई अब उम्र, विदा की बेला आई।।

मन में रखकर द्वेष, बैर अपनों से पाला।

धुला न मन का मैल,जपी निसदिन ही…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:22pm — 6 Comments

कुण्डलिया छंद -

दिखलाते हैं जो सदा, व्हाट्सएप पर ओज।
गुडमार्निंग गुडनाइट जो, करें नियम से रोज।।
करें नियम से रोज, किंतु जब सम्मुख मिलते।
तब फिर इनके होंठ, नहीं रत्तीभर हिलते।।
आगे बढ़कर हाथ, नहीं यह कभी मिलाते।
वटसिपिया व्यवहार, नैट पर ये दिखलाते।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on April 3, 2019 at 11:06am — 2 Comments

कुण्डलिया छंद-

मतदाता को फाँसने, डाल रहे हैं जाल।
नेता आपस में सभी, कीचड़ रहे उछाल।।
कीचड़ रहे उछाल, मची है ता ता थैया।
नागनाथ हैं एक, दूसरे साँप नथैया।।
हर नेता ही रोज, निराले ख्वाब दिखाता।
सारे नटवरलाल, करे अब क्या मतदाता।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on April 1, 2019 at 11:31pm — 8 Comments

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