याद आते हैं
अक्सर
पुराने जमाने ,
बैलों की गाड़ी
वो भूजे के दाने ,
दादी माँ की कहानी
उन्हीं की जुबानी,
भूले से भी न भूले
वो पुरवट का पानी |
अक्सर ही बागों में
घंटों टहलना
पके आमों पे
मुन्नी का मचलना
गुलेलों की बाज़ी
गोलियों का वो खेला
सुबह शाम जमघट पे
लगे मानो मेला
वो मुर्गे की बांग पे
भैया का उठना
रट्टा लगाके
दो दूना पढ़ना
कपडे के झूले पे
करेजऊ का झुलना
छोटी-छोटी…
Added by Chhaya Shukla on April 27, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
आदमी की भूख में उछाल आ गया |
पत्थरों को घिस दिया पहाड़ खा गया |
रुख बदल के जल प्रवाह मोड़ ही दिया,
भूख ही थी आदमी कमाल पा गया |
तम निगल कर रौशनी तमाम कर दिया,
जब लगाई युक्ति तो विकास छा गया |
देखकर सबकुछ खुदा मगन दिखा वहाँ,
आदमी को आज का मचान भा गया |
तन मिला दुर्लभ इसे वृथा नहीं किया
जिन्दगी थोड़ी मगर उठान ला गया ||
( मौलिक अप्रकाशित )
Added by Chhaya Shukla on April 22, 2015 at 12:00pm — 6 Comments
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