रामप्रसाद जी की इकलौती बेटी की शादी थी । सुबह से गहमा-गहमी लगी हुयी थी । रामप्रसाद जी का सबके साथ इतना अच्छा व्यवहार था उनके अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले भी इस विवाह को लेकर उतने ही उत्साहित थे जितने स्वयं रामप्रसाद जी । रामप्रसाद जी के बराबर वाले घर में रहने वाले मोहनलाल जी से कभी छोटी बातों को लेकर हुयी कहा-सुनी इतनी बढ़ गयी थी कि आपस में एक-दूसरे को देखना तो क्या नाम भी सुनना पसंद नहीं था । इस वजह से मोहनलाल जी को विवाह में शामिल होने का बुलावा भी नहीं भेजा था उन्होने । रामप्रसाद जी कि पत्नी…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 4:04pm — 12 Comments
हवा खामोश है
फिजा भी उदास
बाजार सजा है
नफ़रतों का
मंदिर, मस्जिद, गिरजा,
क्या देखें
सभी जैसे निर्विकार
सड़कें तो पट गयी
जिंदा लाशों से
इंसानियत मर रही
आस दरक रही
सियासत व्यस्त है
दरकार दबाने में
अभिलाषा बुझ रही
आँसू निकलते नहीं
शब्द बोलते नहीं
'कठुआ', 'उन्नाव', 'दिल्ली,
'…………', '……….'
और कितने…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on April 17, 2018 at 12:20pm — 7 Comments
पढ़ाते रहे
कभी पढ़ जो पाते
बच्चे का मन ।
आदर्शवाद ?
हुआ किताबी भाषा
धूल फाँकता ।
घर आँगन
सूना, मन उदास
बची है आस
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:52pm — 6 Comments
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