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Gul Sarika Thakur's Blog – May 2013 Archive (3)

कंजूस

ठीक ही तो कहा उसने 
क्या दरिद्रों की तरह 
लम्हों के पीले पत्ते 
बटोरती हो और 
और कबाड़ी वाले की तरह 
टेर लगाए फिरती हो 
एहसासों के मोती चुगो 
और राज हंसिनी कहलाओ 
और मैं सोचती हूँ 
उसकी जेब से 
अपने हिस्से की 
अठननी चवन्नी 
झपट कर भाग खड़ी होऊं 
कंजूस एक एक पाई का 
हिसाब रखता है

Gul Sarika 

Added by Gul Sarika Thakur on May 18, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

आख़री निवेश

दोनों एक सांझा चूल्हे में सुलग रहे थे

नाउम्मीदी की गीली लकड़ी में

पूरी ताकत से फूँक मारी उसने

इश्क धुआं धुंआ हो गया

किसे पता था

इस धुंआ के छंटते ही

कलेजा काठ का और आँखे

पथरीली पगडंडी बन जाएंगी

जो ठीक वहीं आकर ठिठकती है

जहां रिश्ते की ताजी ताजी कब्र बनी है|

गजब के सब्र से उसने

बुझी हुई…

Continue

Added by Gul Sarika Thakur on May 15, 2013 at 11:02pm — 14 Comments

सुनो ऋतुराज

सुनो ऋतुराज!

मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है

ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है

लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय के दरकने में

कोई फर्क नहीं होता ..

क्योकि दोनो में निहित…

Continue

Added by Gul Sarika Thakur on May 14, 2013 at 7:30pm — 9 Comments

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