दोनों एक सांझा चूल्हे में सुलग रहे थे
नाउम्मीदी की गीली लकड़ी में
पूरी ताकत से फूँक मारी उसने
इश्क धुआं धुंआ हो गया
किसे पता था
इस धुंआ के छंटते ही
कलेजा काठ का और आँखे
पथरीली पगडंडी बन जाएंगी
जो ठीक वहीं आकर ठिठकती है
जहां रिश्ते की ताजी ताजी कब्र बनी है|
गजब के सब्र से उसने
बुझी हुई तारीखों के फूल
और कुछ लम्हों की ख़ाक
उस कब्र पर डाल दी
यह उसका आख़री निवेश था
उस दिल की सल्तनत के नाम
जिसकी वह मलका हुआ करती थी ...
Sarika
Comment
उस कब्र पर डाल दी
यह उसका आख़री निवेश था
उस दिल की सल्तनत के नाम
जिसकी वह मलका हुआ करती थी ...
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई !
अत्यंत अर्थ-मर्मपूर्ण रचना... कितने अर्थों को उजागर करती सटीक और सौम्य रचना के लिए बधाई..
विजय जी की टिप्पणी वाकई काबिल-इ-तारीफ है
सुन्दर रचना .. सारिका जी
अति उत्तम कविता आदरणीया.बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
Bahut hi Abharee hun aap sabhee ..is hausla afjaai ke liye kyaa kahun ...mujhe afsos hai main pahle kyon nahi aayee ..... mere sameecheen pathak to yahaan .. Abhaar aur swagat aap sabhee ka.. is sight se familiar nahi thee isliye katra rahee thee...
गजब के सब्र से उसने
बुझी हुई तारीखों के फूल
और कुछ लम्हों की ख़ाक
उस कब्र पर डाल दी
यह उसका आख़री निवेश था-----
उस दिल की सल्तनत के नाम
जिसकी वह मलका हुआ करती थी ...शास्वत सत्य यही है कि कब्र पर जो भी डाले, उसके प्रति भौतिक रूप से
आखरी निवेश होता है | और वह क्षण बड़ा मार्मिक | अब न सल्तनत रही और न वह मलका | ऐसी मार्मिक
रचना के लिए बधाई
क्या बात है सुंदर अति सुंदर
बधाई हो इस अभिव्यक्ति के लिए सादर
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया सारिका जी हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online