1212 1122 1212 22 (ग़ज़ल कतआ से शुरू है )
किसी की आँख से अश्कों की आशनाई का
किसी जुबान से लफ़्ज़ों की बेवफाई का
सुखनवरों का हुनर है जो ये समझते हैं
भला क्या रिश्ता है कागज से रोशनाई का
जमीन बिछ गई आकाश बन गया कम्बल
बटा ग़िलाफ़ तलक माँ की उस रिजाई का
जहर भी पी गई मीरा जुनून-ए-उल्फत में
न होश था न उसे इल्म जग हँसाई का
लगाम लग गई उसके फिजूल खर्चों पर
गया जो पैसा…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 21, 2017 at 3:30pm — 13 Comments
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