अंधेरे में रोशनी,
जीवन का सहारा ।
शाम को बिछड़ती,
जब सुबह निहारा ।
इधर जब पौ फटी,
तो देखो लो नजारा।
क्या जानवर, पक्षी,
सब दिखे बे सहारा।
कोई रहम न करता ,
क्या कानून निराला ।
भूखे इंसान की रोटी,
बेटी हजम कर डाला।
रोशनी की आस दिखती,
परंपरा का डर दे डाला ।
तन मन पर हजारों पीड़ा,
सहन करके भी जी लेता ।
अपनों का पेट भरता ,
अतीत को भूल जाता ।
मानवता को कलंकित…
ContinueAdded by Ram Ashery on May 14, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
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