(१)
दो पहाड़ियों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते
खाई भी जोड़ती है
- गीत चतुर्वेदी
कोई किसी से कितनी नफ़रत कर सकता है? जब नफ़रत ज़्यादा बढ़ जाती है तो आदमी अपने दुश्मन को मरने भी नहीं देता क्योंकि मौत तो दुश्मन को ख़त्म करने का सबसे आसान विकल्प है। शुरू शुरू में जब मेरी नफ़रत इस स्तर तक नहीं पहुँची थी, मैं अक्सर उसकी मृत्यु की कामना करता था। मंगलवार को मैं नियमित रूप से पिताजी के साथ हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाने जाता था। प्रसाद पुजारी को देने के…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 16, 2015 at 6:29pm — 14 Comments
बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ
हज़्म हो जाएगा विष भी मैं अगर खा जाऊँ
कैसा दफ़्तर है यहाँ भूख तो मिटती ही नहीं
खा के पुल और सड़क मन है नहर खा जाऊँ
इसमें जीरो हैं बहुत फंड मिला जो मुझको
कौन जानेगा जो दो एक सिफ़र खा जाऊँ
भूख लगती है तो मैं सोच नहीं पाता कुछ
सोन मछली हो या हो शेर-ए-बबर, खा जाऊँ
इस मुई भूख से कोई तो बचा लो मुझको
इस से पहले कि मैं ये…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 12, 2015 at 12:38pm — 16 Comments
(१)
तुम्हारा शरीर
रेशमी ऊन से बुना हुआ
सबसे मुलायम स्वेटर है
मेरा प्यार उस सिरे की तलाश है
जिसे पकड़कर खींचने पर
तुम्हारा शरीर धीरे धीरे अस्तित्वहीन हो जाएगा
और मिल सकेंगे हमारे प्राण
(२)
तुम्हारे होंठ
ओलों की तरह गिरते हैं मेरे बदन पर
जहाँ जहाँ छूते हैं
ठंडक और दर्द का अहसास एक साथ होता है
फिर तुम्हारे प्यार की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2015 at 4:00pm — 10 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है
गरीबी ही सदा हमको कलेजे से लगाती है
भरा हो पेट जिसका ठूँस कर उसको खिलाती पर
जो भूखा हो अमीरी भी उसे भूखा सुलाती है
अमीरी का दिवाला भर निकलता है सदा लेकिन
गरीबी कर्ज़ से लड़ने में जान अपनी गँवाती है
अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा
गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है
ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 4:13pm — 18 Comments
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