(चौथे शैर में तक़ाबल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करे)
नसीहत जो बुज़ुर्गों की न मानी याद आएगी
हमें ता उम्र उनकी सरगरानी याद आएगी
मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का
ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी
ज़माने भर की आसाइश के जब सामाँ बहम होंगे
तुझे माँ-बाप की क्या जाँ फ़िशानी याद आएगी
जुड़ी होंगी मज़ालिम की बहुत सी दास्तानें भी
हवेली गाँव की जब ख़ानदानी याद…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 7, 2018 at 12:00pm — 34 Comments
ज़िन्दगी में जो हुआ सूद-ओ-ज़ियाँ गिनता रहा
बैठ कर मैं आज सब नाक़ामियाँ गिनता रहा
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा
और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में
तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा
रोकता कैसे मैं उनको नातवानी थी बहुत
बे अदब लोगों की बस गुस्ताख़ियाँ गिनता रहा
लोग भूके मर रहे थे और यारो उस…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 1, 2018 at 10:49am — 19 Comments
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