1212 2212 22 1212
भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से
निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से
फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में
बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से
कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की
गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से
रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया
तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से
कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में
जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से
उमेश…
ContinueAdded by umesh katara on May 4, 2014 at 12:40pm — 10 Comments
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