मन मेरे तू क्या होता?
जो मुझको तू भा जाता
कर लेता मुझको दीवाना
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तुलसी दल होता
मोहन के मस्तक पर सोहता
पा जाता जीवन निर्वाण
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे जमुना जल होता
कृष्णा के तन को छू जाता
पा जाता तू सम्मान
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तू हरिपथ होता
प्यारे के चरणों को छूता
पा जाता सुजीवन सोपान
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तू दर्पण होता …
Added by kalpna mishra bajpai on May 21, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
सब परछाईं सा लगता है
कब पूछा किसने हाल मेरा
किसने मुझ को दुलराया था
हर काम यहाँ मेरा नसीब
सब कुछ हमको ही करना था
क्या बोलूँ क्या न बोलूँ ?
बस मौन साध के रहना है
घर छोड़ के आई बाबुल का
सोचा ये आँगन मेरा है
पर कोई नहीं जिसे अपना कहूँ
है देश यहाँ बेगानों का
क्या सोचूँ क्या ना सोचूँ ?
बस चंद दिनों का मेला है
सब जन करते निंदा मेरी
करना था वो करती आई
गर फिर भी…
Added by kalpna mishra bajpai on May 19, 2014 at 10:30pm — 22 Comments
बेकार अख़बारों की ढेरी जैसा
खाली दूध की थैली व बोतल -सा
मन की उपलब्धियों का -
माल बिक सकता है ?
कोई कबाड़ी वाला आएगा।
ये सब ले जाएगा,
पूरा-का-पूरा कबाड़ उठ जाएगा
सच्ची सजावट सुथरी हो कर निखरेगी
हर चीज यथावत रखी हुई चमकेगी ।
मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में
टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-
मुरझाया हुआ विश्वास,
फटे-पुराने जूतों सा-
बदरंग स्वाभिमान ,
टूटी -फूटी काँच की बोतल…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on May 3, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
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