भारत तीर्थ
(कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता से क्षमायाचना सहित कुछ पंक्तियों का हिन्दी भावानुवाद)
ओ मेरे मन जागो जागो
पुण्य तीर्थ में धीरे,
भारत के जन-मानस के
सागर तीर में.
यहाँ खड़े कर बाहु प्रसारित
नर-नारायण को नमन करुँ मैं,
उदार छन्द में परम आनन्द से,
उनका आज वंदन करुँ मैं.
ध्यानमग्न है यह धरती -
नदियों की माला जपती,
यहीं नित्य दिखती है मुझको
पवित्र यह धरणी रे…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on May 10, 2013 at 12:50am — 6 Comments
यह रोज़ ही की बात है
जब रात गए,
शबनम की बरसात हुआ करती है-
पात पात रात भर
वात बहा करती है,
चोरी छिपे मैंने भी देखा है
दोनों को,
जब रात से प्रभात की
मुलाक़ात हुआ करती है -
मैं तो बस दर्शक हूँ
यह एक तसवीर है.
(2)
रात की लज्जा,
चहारदीवारी के साये में,
मेरे आंगन में छुपे
कलियों के आंचल में
सिमट-सिमट जाती है -
लेकिन वह सूरज
अनायास मेरे घर की
प्राचीर को लांघ…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on May 7, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
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