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जयनित कुमार मेहता's Blog – May 2016 Archive (4)

कितनी ज़्यादा ख़ुशी पे पाबंदी (ग़ज़ल)

2122 1212 22



क्या लगी मैक़शी पे पाबंदी

यूँ लगे, ज़िन्दगी पे पाबंदी



जो लगा दे तो मर ही जाऊँ मैं

गर कोई शाइरी पे पाबंदी



ग़म की सीमा रही नहीं कोई

कितनी ज़्यादा ख़ुशी पे पाबंदी



वो लगाते ज़ुबान पर ताला

और फिर ख़ामुशी पे पाबंदी



बम-पटाखों पे कोई रोक नहीं

आजकल छुरछुरी पे पाबंदी



खेल लो खेल ख़ूब क़ुदरत से

क्यूँ लगे त्रासदी पे पाबंदी



मेरे दुश्मन हैं इंतज़ार में "जय"

कब लगे दोस्ती पे… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 17, 2016 at 6:58pm — 11 Comments

सदा सुन के ज़मीं की, चाँद तारे छोड़ आया हूँ (ग़ज़ल)

1222 1222 1222 1222



फ़लक पर के सभी दिलकश नज़ारे छोड़ आया हूँ

सदा सुन के ज़मीं की, चाँद-तारे छोड़ आया हूँ



मैं अपने बोरिये-बिस्तर शहर ले के तो आया, पर

वो पनघट,बाग़,पोखर,खेत...सारे छोड़ आया हूँ



जहाँ अपनी वफ़ा का मुस्कुराता एक गुलशन था

वहीं अश्कों के कुछ तालाब खारे छोड़ आया हूँ



वज़ूद उसका न मिट जाए कहीं दरिया के दलदल में

तड़पती मीन को सागर किनारे छोड़ आया हूँ



पिछड़ जाए न बेटा रेस में, ज्यों गोद से उतरा

उसे हॉस्टल प्रतिस्पर्धा के… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 12, 2016 at 8:46am — 5 Comments

मातृ-दिवस पर एक ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



गगन मेरा पिता है और ये धरती है मेरी माँ

मैं जिसमें लोटता रहता हूँ वो मिट्टी है मेरी माँ



कुशलता से सभी रिश्तों के मनकों को पिरोती है

बड़ी ही नर्म और' मजबूत-सी डोरी है मेरी माँ



ज़माने के सभी रिश्तों को पल-भर में भुला दूँ,पर

मैं उसकी कोख से जन्मा, मेरी अपनी है मेरी माँ



फ़िज़ा में गूंजता हर ओर मातम,जब सिसकती है

दहल जाती है पृथ्वी, जब कभी रोती है मेरी माँ



यही कारण है शायद, मैं कभी मंदिर नहीं जाता

मेरी… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 8, 2016 at 7:00am — 5 Comments

ज़िन्दगी से जो मिला, हमको गवारा हो गया (ग़ज़ल)

2122 2122 2122 212



ज़िन्दगी से जो मिला हमको गवारा हो गया

कुछ गिला-शिकवा किये बिन ही गुज़ारा हो गया



टूटकर ख़ुद पूर्ण करता है जो औरों की मुराद

मेह्रबानी से किसी की मैं वो तारा हो गया



सत्य-अहिंसा साथ लेकर हम भटकते ही रहे

फ़ोटो से बापू की, उसका काम सारा हो गया



कल तलक जो मेरे सीने में धड़कता था,वो दिल

आज ये ऐलान करता हूँ, तुम्हारा हो गया



क़ैद कर दो प्रेम को इतिहास के पन्नों में अब

आजकल के प्रेमियों को 'काम' प्यारा हो… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 7, 2016 at 6:44am — 6 Comments

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