For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Satish mapatpuri's Blog – May 2010 Archive (6)

थमते कदम आ जाइये

चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.

जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.

प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.

कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.

सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.

कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.

इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.

इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये

याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये

सज… Continue

Added by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:17pm — 8 Comments

आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे (ग़ज़ल )

दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे .
किसमें हिम्मत जो हमपे सितम ढा सके .
वो तो अपने ही थे जो सताते रहे
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .

उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .

काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .

गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 24, 2010 at 4:00pm — 5 Comments

चाहत (ग़ज़ल )

गिला उनको हमसे हमीं से है राहत .
खुदा जाने कैसी है उनकी ये चाहत .
उनके लिए मैं खिलौना हूँ ऐसा .
जिसे टूटने की नहीं है इज़ाज़त .
इन्सां से नफ़रत हिफाज़त खुदा की .
ये कैसा है मज़हब ये कैसी इबादत .
बदन पे लबादे ख्यालात नंगे .
यही आजकल है बड़ों की शराफत .
सज-धज के मापतपुरी वो हैं निकले .
कहीं हो ना जाए जहाँ से अदावत .
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 20, 2010 at 1:00pm — 8 Comments

एक प्रेमिका की अभिव्यक्ति

अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .

दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .

जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .

देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .

प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .

दिल का -------------------------------------------

शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .

सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .

आज भी याद है कल की बातें, क्यों इससे इनकार करूँ .

दिल का… Continue

Added by satish mapatpuri on May 17, 2010 at 11:29am — 4 Comments

ग़ज़ल

तुम्हारे नाम की ऐसी हंसी एक शाम कर देंगें .

रहोगे बेखबर कैसे तुम्हें बदनाम कर देंगें .

मोहब्बत में दिलों को हारने वाले बहुत होंगे .

मगर दिल चीज़ क्या हम ज़िन्दगी तेरे नाम कर देंगें .

तेरा दावा है तेरा संग दिल हरगिज़ ना पिघलेगा .

हमारी जिद्द है की एक दिन तुम्हें गुलफाम कर देंगे .

सुना है प्यार से मेरा नाम लेतो हो अकेले में .

यकीं होता नहीं की आप भी ये काम कर देंगें .

वफ़ा मापतपुरी मिलती है अब ग़ज़लों में शेरों में .

मगर हम बेवफा कैसे तुम्हें ऐलान कर… Continue

Added by satish mapatpuri on May 14, 2010 at 4:20pm — 6 Comments

जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .

ग़ज़ल
यूँ ना खेला करो दिल के ज़ज्बात से .
जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .
रोज़ मिलते रहे सिर्फ मिलते रहे .
अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से .
ख्वाब में आता हँसता लिपटता सनम .
हो गई आशनाई हमें रात से .
गा रहा था ये दिल हंस रही थी नज़र .
क्या पता आँख भर आई किस बात से .
फन को मापतपुरी पूछता कौन है .
पूछे जाते यहाँ लोग अवकात से .
गीतकार -सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 5, 2010 at 2:04pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
5 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
23 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service