मैं मानता हूँ कि यदि विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य विधाओं की छोटी रचनायें कहानियां आदि/अतुकांत कविताएं/ क्षणिकाएं/कटाक्षिकायें आदि सम्मिलित की जायें; योग्य हिंदी शिक्षकों द्वारा बढ़िया समझाई जायें, तो विद्यार्थी उन्हें अधिक पसंद करेंगे।
अभी विद्यालयों में हिंदी पाठ भलीभांति कहाँ समझाये जा रहे हैं? मुख्य कठिन विषयों…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 26, 2019 at 9:30am — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2019 at 11:31pm — 3 Comments
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया
मुश्किल में वोटर भैया
हुआ-हुआ जो बहुत हुआ
अपशब्दों का खेल हुआ
जुआ-जुआ सा हो गया
मतदाता खप-बिक गया
जनतंत्र पर क्या मंत्र हुआ
दुआ-दुआ करो, न बददुआ
संविधान का कर दो भला
कर भला , सो सबका भला
टाल सको, तो अब टाल बला
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2019 at 9:00am — 3 Comments
माँ बहुरूपी
मौजूद इर्द-गिर्द
पहचाना मैं!
ममता बरसाती
नि:स्वार्थ वामा
प्रकृति महायोगी
रोगी-भोगी मैं!
है त्यागी, चिकित्सक
सहनशील
सामंजस्य-शिक्षिका
शिष्य, लोभी मैं!
व्यक्तित्व बहुमुखी
चरित्रवान
परोक्ष-अपरोक्ष
लाभान्वित मैं!
विवादित-शोषित
कोमलांगिनी
अग्निपथ गमन
स्वाभिमानी माँ
यामिनी या दामिनी
अभियुक्त मैं!
बहुजन सुखाय
आत्म-दुखाय
उर्वीजा देवी तुल्य
है पूज्यनीय
पाता माता में…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 10, 2019 at 3:00am — 1 Comment
टेढ़ा-मेढ़ा हास्य-रस
बड़बोलापन, बस!
सुबुद्धि हुई कुबुद्धि
धन-सिद्धि हो, बस!
तेरा-मेरा हास्य-रस
जीवन जस का तस
बुद्धियांँ हो रहीं ठस!
बच्चे-युवा हैं बेबस!
भोंडा-ओछा हास्य-रस
टीवी टीआरपी तेजस!
हास्यास्पद लगती बहस
सेल्फ़ी रहस्य दे बरबस!
स्वच्छ, स्वस्थ हास्य-रस
स्वाभाविक बरसता बस!
बाल-बुज़ुर्ग-मुख के वश
या फ़िर दे कार्टून, सर्कस!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 5, 2019 at 10:28pm — 2 Comments
बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी तीन रंगमंचीय कलाकार थिएटर में फुरसत में मज़ाकिया मूड में बैठे हुए थे।
"तुम दोनों धृतराष्ट्र की तरह स्वयं को अंधा मानकर अपनी आंखों में ये चौड़ी और मोटी काली पट्टियां बांध लो!" उनमें से एक ने शेष दो साथियों से कहा, "पहला अंधा सुबुद्धि और दूसरा अंधा कुबुद्धि कहलायेगा! ... ठीक है!"
दोनों ने अपनी आंखों में पट्टियां सख़्ती से बंधवाने के बाद उससे पूछा, " ... और तुम क्या बनोगे, ऐं?"
"मैं! .. मैं बनूंगा तुम्हारी और आम लोगों की 'दृष्टि'!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 4, 2019 at 3:30am — 2 Comments
स्थानीय पार्क में शाम की चहल-पहल। सभी उम्र के सभी वर्गो के लोग अपनी-अपनी रुचि और सामर्थ्य की गतिविधियों में संलग्न। मंदिर वाले पीपल के पेड़ के नीचे के चबूतरे पर अशासकीय शिक्षकों का वार्तालाप :
"हम टीचर्ज़ तो कोल्हू के बैल हैं! मज़दूर हैं! यहां आकर थोड़ा सा चैन मिल जाता है, बस!" उनमें से एक ने कहा।
"महीने में हमसे ज़्यादा तो ये अनपढ़ मज़दूर कमा लेते हैं! अपन तो इनसे भी गये गुजरे हैं!" दूसरे ने मंदिर के पास पोटली खोलकर भोजन करते कुछ श्रमिकों को देख कर कहा।
उन दोनों को कोल्ड-ड्रिंक्स…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 1, 2019 at 5:32pm — 3 Comments
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