मौत देना मौत का अहसास मत देना,
जो छला जाए कभी विश्वास मत देना ।
पंख दे पाओ नहीं गर तो वही अच्छा
सामने मेरे खुला आकाश मत देना।
दश्त देना, धूप देना , गरमियाँ देना
ऐसे में लेकिन खुदाया प्यास मत देना ।
है हमे मंजूर अंधेरा उम्र भर का
जुगनुओं से ले मुझे प्रकाश मत देना ।
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नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on May 27, 2015 at 10:28pm — 11 Comments
जब करूंगा अंतिम प्रयाण
ढहते हुए भवन को छोडकर
निकलूँगा जब बाहर
किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?
वहाँ हवा होगी या निर्वात होगा?
होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा
मुझे ऊंचाई से डर लगता है
तैरना भी नहीं आता
क्या यह डर तब भी होगा
मेरा हाथ थामे कोई ले चलेगा
या मैं अकेले ही जाऊंगा
चारो ओर होगा प्रकाश
या अंधेरे ने मुझे घेरा होगा
मुझे अकेलेपन और अंधकार से भी डर लगता है
क्या यह डर तब भी होगा?
भय तो विचारों से होते हैं उत्पन्न
क्या…
Added by Neeraj Neer on May 3, 2015 at 6:47pm — 12 Comments
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