Added by Anurag Singh "rishi" on June 29, 2013 at 12:13pm — 13 Comments
मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए
मेरी बाँहों में आने का वादा करो
मै जहाँ ये भुला दूँगा सुन लो मगर
मुझको दिल में बसाने का वादा करो
मै जो अब तक अकेला हूँ जीता रहा
धुंधले ख्वाबों को आँखों से सीता रहा
ये जो कोरी पड़ी है मेरी जिंदगी
रंग अपना चढ़ाने का वादा करो
मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए
मेरी बाँहों में आने का वादा करो
तुम जो रूठी तो तुमको मना लूँगा मै
तुमको पल भर में अपना बना लूँगा मै
मै भी रूठूँगा…
Added by Anurag Singh "rishi" on June 24, 2013 at 6:30pm — 16 Comments
यूँ पाठ जिंदगी का पढ़ाने का शुक्रिया
की बेरुखी से मुझको भुलाने का शुक्रिया
गुज़रे हुए निशान कुछ रेती पे पैर के
यादें यूँ अपनी छोड़ के जाने का शुक्रिया
कोई तो चाहिए ही था इक हमसफ़र तुझे
दिल में किसी को और बसाने का शुक्रिया
रातों से हो गयी है मुहब्बत सी अब हमें
ख्वाबों में ही दीदार कराने का शुक्रिया
दिल मोम का है सोंच के रोता रहा सदा
पत्थर कि तरहा दिल को बनाने का शुक्रिया
मुझको लगा ये काफ़िला मेरे ही साथ है…
ContinueAdded by Anurag Singh "rishi" on June 10, 2013 at 1:15pm — 11 Comments
भले ही आज जीवन में, तेरे कायम अँधेरा है
इसी दुनिया में ही लेकिन, कहीं रौशन सवेरा है
मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी
मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है
कभी हिंदू कभी मुस्लिम. रहे हैं हारते हरदम
सियासत खेल ऐसा है, न तेरा है न मेरा है
कुतरते ही रहे है देश को, हरदम जहाँ नेता
इसे संसद न कहियेगा, ये चूहों का बसेरा है
न जलती है न मरती है, महज़ कपड़े बदलती है
“ऋषी” इस रूह की खातिर, ये जीवन एक डेरा है …
Added by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 7:30am — 13 Comments
दिल के करीब आइये कुछ तो बताइए
यूँ आग को सुलगा के भला क्यों बुझाइए ?
दुनिया के डर से आप को तनहा न छोडिये
बस आँख बंद कीजिए मुझमे समाइये
रोयी है बहुत आँख मुकम्मल ये जिंदगी
पलकों पे मेरी फिर नए सपने सजाइए
जीवन के ओर छोर का कुछ भी पता नही
यूँ जिंदगी में आइये वापस न जाइए
मुमकिन है थोड़ी गलतियाँ होती रही “ऋषी”
खुद को न ऐसे कोसिए न ही सताइए
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Added by Anurag Singh "rishi" on June 3, 2013 at 7:35pm — 7 Comments
दिल में उठता पीर देखो
द्रोपदी का चीर देखो
मोल जिसका खो गया है
आँख का वो नीर देखो
दिल में जो सीधे लगे बस
शब्द के वो तीर देखो
फिर हुआ बलवा कहीं पे
खो गया जो वीर देखो
थी कभी नदियाँ यहाँ पर
बह गया जो छीर देखो
सांवरे को भूल कर के
आज राँझा हीर देखो
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Added by Anurag Singh "rishi" on June 1, 2013 at 6:00pm — 6 Comments
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