= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments
मैं अकेला हूँ प्रिये -
हर दृश्य में, हर श्राव्य में,
हर मूर्त में, हर काव्य में,
जो परे हर सुख से, मैं वो क्लान्त बेला हूँ प्रिये...
मैं अकेला हूँ प्रिये -
[१] इक संग तेरे जीवन मधुर रसधार बन बहता गया,
तेरे लिए हर क्लेश दुनिया का सहा, सहता गया,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2011 at 6:00pm — 5 Comments
Added by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 9:30am — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |