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यह बारिशों का मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी,
उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,
लय तान का समागम, कितना हसीन…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on June 17, 2013 at 9:30am — 14 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते।
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।
लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े हैं सीढ़ियाँ,
शीश पर अब पाँव रख, आकाश पाना चाहते।
भर लिए गोदाम लेकिन, पेट भरता ही नहीं,
दीन-दुखियों के निवाले, बेच खाना चाहते।
बाँटते वैसाखियाँ, जन-जन को पहले कर अपंग,
दर्द देकर बेरहम, मरहम लगाना चाहते।
खूब दोहन कर निचोड़ा, उर्वरा भू को प्रथम,
अब हलक की…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on June 2, 2013 at 12:00pm — 27 Comments
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