२१२२ ११२२ २१२२
कुछ जलाना तो चिरागों को जलाओं
पी के तम को ये जहाँ रोशन बनाओ
चल पड़ा है वो मसीहा जग बदलने
राह से कांटे सभी उसको हटाओ
आज चिलमन है हमारे दरमिया क्यों
नाजनीनो यूं न हमको तुम सताओ
सब की हम पर ही नजर है बज्म में अब
जाम नजरों से हमें छुपकर पिलाओं
है सबब कोई खफा जो हमसे हो तुम
बेकली दिल की बढ़ी कुछ तो बताओ
बात बज्मों में निगाहें ही करेंगी
तुम भी जो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 26, 2014 at 2:32pm — 20 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२
मेरे हाथों में तारे देख कर वो क्यूँ जला है
मेरे मालिक तेरा इंसान जाने क्या बला है
लड़ा ताउम्र दरिया हौसलों के साथ अपने
लगाया था गले जिनको उन्हें ही क्यूँ खला है
घुसे थे झाड़ियों में तो बहुत ज्यादा संभलकर
थे हम भी बेखबर उस नाग से जो घर पला है
बड़ा मुश्किल है फहराना ये परचम शोहरत का
यकीनन कारवा पहले या आखिर में चला है
नहीं शिकवा गिला हमको कभी भी आपसे था
कभी खिलता…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 10, 2014 at 5:50pm — 15 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on June 1, 2014 at 2:11pm — 19 Comments
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