हरी भरी धरती मन मोहती है ,
चहुं ओर फैली हरियाली मोहती है ,
मुसकुराते खिले कुसुम मोहते हैं,
झूमते पेड़ पौधे मन मोहते है ।
अद्भुत है धरती का सौंदर्य ,
कल कल करती नदिया बहती ,
चम चम करते पोखर तालाब ,
अद्भुत अनुपम धरा है दिखती।
किन्तु .....................
ऐ! धरती पुत्र आज तो ,
धरती माँ न ऐसी दिखती है,
टप टप गिरते आँसू बस रोती है,
मेरा श्रंगार करो बस ये ही कहती है।
किन्तु आज…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 6, 2013 at 8:00am — 18 Comments
चुल्लू भर पानी
चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 6:30pm — 5 Comments
तपते रेगिस्तान मे पानी की बूंद जैसी,
उफनती नदी के बीच कुशल खिवैया सी ।
ससुराल मे तरसती बहू के लिए माँ सी ,
तमाम गलतियों के बीच समाधान सी ।
…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 4:30pm — 11 Comments
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