Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2016 at 9:21pm — 13 Comments
महीन है विलासिनी
महीन हैंं विलासिनी तलाशती रही हवा, विकास के कगार नित्य छांटते ज़मीन हैं.
ज़मीन हैं विकास हेतु सेतु बंध, ईट वृन्द, रोपते मकान शान कांपते प्रवीण हैं.
प्रवीण हैं सुसभ्य लोग सृष्टि को संवारते, उजाड़ते असंत - कंत नोचते नवीन हैं.
नवीन हैं कुलीन बुद्ध सत्य को अलापते, परंतु तंत्र - मंत्र दक्ष काटते महीन हैं.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार.... केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2016 at 8:30pm — 13 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments
दोहो का उपकार
सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.
शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१
मंदिर की श्रद्धा लिये खड़ी दीप- जयमाल.
वरे नित्य सुख- शांति को, रखे प्रेम खुशहाल.२
मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.
मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३
पश्चिम का तारा उदय, हुआ ईद का चांद.
उन्तिस रोज़ो से डरा, छिपा शेर की मांद.४
रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.
उन्तिस दिन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 9, 2016 at 8:30pm — 12 Comments
(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम
करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.
अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.
वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.
तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.
(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष
कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.
तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 8, 2016 at 8:00pm — 8 Comments
कलाधर छंद .........तने- तने मिले घने
वृक्ष की पुकार आज, सांस में रुंधी रही कि, वायु धूप क्रूर रेत, चींखती सिवान में.
मर्म सूख के उड़ी, गुमान मेघ में भरा कि, बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति, त्यागती सिवान में.
डूबती गयी नसीब, बीज़ कोख में लिये, स्वभाव प्रेम छांव भाव, रोपती सिवान में.
कोंपलें खिली जवां, तने- तने मिले घने, हसीन वादियां बहार, झूमती सिवान में.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 7, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
गंगा निर्मल पावनी, नहीं मात्र जल धार.
अपने आंचल नेह से, करती है उद्धार.
करती है उद्धार, प्रेम श्रद्धा उपजा कर.
जन खग पशु वन बाग, सिक्त हैं कूप-सरोवर.
हुआ कठौता धन्य, करे सबका मन चंगा.
भारत का सौभाग्य, मोक्ष सुखदायी गंगा.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 4, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
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