छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास .....
वक्त जो हम पर भारी है
अपनी भी तय्यारी है
पूरा कारोबारी है
ये अमला सरकारी है
.…
ContinueAdded by वीनस केसरी on June 20, 2013 at 11:00am — 36 Comments
दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें ....
ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए
डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए…
Added by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 12:30am — 34 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी की मुहब्बतों के हवाले ....
वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे
पुकारता भी रहे और नज़र न आए मुझे
मैं डर रहा हूँ कहीं वो न हार जाए मुझे
मेरी अना के मुक़ाबिल नज़र जो आए मुझे
मुझे समझने का दावा अगर है सच्चा तो …
Added by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 1:00am — 32 Comments
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