पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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कितनी सुन्दर धरा हमारी
चंदन सा रज महके
चह-चह चहकें चिड़ियाँ कितनी
बाघ-हिरन संग विचरें
हिम-हिमगिरि वन कानन सारे
शांत स्निग्ध सब सहते
महावीर थे बुद्ध यहीं पर
बड़े महात्मा, हँस सब शूली चढ़ते
स्वर्ग सा सुन्दर भारत भू को
पूजनीय सब बना गए
पर आज ..
एक…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 25, 2014 at 11:20am — 12 Comments
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
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कौरव रावण इतिहास बहुत से
अधम नीच नर बदला लेते
अपनी मूंछे ऊंची रखने को
नारी का बलि चढ़ा दिए
अंजाम सदा वे धूल फांक
मुंह छिपा नरक में वास किये
मानव -दानव का फर्क मिटा
मानवता को बदनाम किये
नाली के कीड़े तुच्छ सदा
खुद को भी फांसी टांग लिए
नारी रोती है विलख आज
क्या पल थे ऐसे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 13, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
जिया जरे दिन रात हे पीऊ
तड़प के रात बिताऊं
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भोर उठूँ जब बिस्तर खाली
गहरी सांस ले मन समझाऊँ
दुल्हन जब कमरे से झाँकू
पल-पल नैन मिलाती
अब हर आहट बाहर धाती
'शून्य' ताक बस नैन भिगोती
फफक -फफक मै रो पड़ती पिय !
फिर जी को समझाती
जी की शक्ति आधी होती
दुर्बल काया कैसे दिवस बिताऊं ?
जिया जरे दिन रात हे पीऊ
तड़प के रात…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
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