“सुनंदा .सुनंदा, सुन तो सही, इतनी उदास क्यों है?”
“कुछ नहीं माँ बस सर में थोडा दर्द है !”
“अच्छा ठीक है तू नहा कर आ मैं तेरे सर की मालिश कर देती हूँ !”
“तुम भी न माँ हर बात के पीछे ही पड़ जाती हो .... सुनंदा ने चिल्लाते हुए कहा !”
“तेरी रगों में मेरा ही खून दौड़ रहा है सुनंदा, मैं सब समझ रहीं हूँ, तूने अपने पिता की म्रत्यु के बाद उनके दवाई बनाने के कारखाने को इतने अच्छे से संभाला, कभी भी तूने मुझे उनकी कमी महसूस नहीं होने दी, आज अगर वो जिन्दा होते तो भी क्या तू ऐसे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 27, 2015 at 9:07am — 6 Comments
पुष्प अधखिले : हरि प्रकाश दुबे
ओस की बूंदों में भीग कर
श्रृंगार नया मन रूप का कर
सूरज की रोशनी में चमकते हुए
खूब इठलाते हैं, पुष्प अधखिले !
मंदिर- मज़ार में चढाए जाते है
प्रभु चरणों मै अर्पित हो कर
मन में एक विश्वाश जगा
फूले नहीं समाते हैं, पुष्प अधखिले !
प्रिय को समर्पण की चाह में
किताबों में रख दिए जाते है
प्रेम के इज़हार और इंतज़ार में
सूख कर भी मुस्कराते हैं, पुष्प अधखिले…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 4:50pm — 8 Comments
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