जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है,
किन्तु सुलभ सुरा का पान, मन का मद भी जाये है.
नैनो में प्राण बसे तू ही है मनमीत मेरा,
बनके बजती तू सरगम तू ही है संगीत मेरा,
तुझको दिवास्वप्न में देखूँ , देखूँ भोर के तारों में,
तेरी काया होती निर्मित, हिम पर्वत जलधारो में,
तू ही अतिथि अंर्तमन की दूजा कोई न भाये है
कथित चहुँ लोक में कोटि आकर्षक बालायें हैं
जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें हैं
किन्तु सुलभ सुरा…
ContinueAdded by इमरान खान on June 16, 2011 at 1:33pm — No Comments
वसीयत मे इमरोज़-ओ-अय्याम लिख दिए,
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
न रंज ही होता न दर्द ओ अलम था,
वो आ गया होता तो बेज़ार कलम था,
एहसान, ये उसी के तमाम लिख दिए.
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
मेरी ख्वाहिशें मुलजिम मेरी रूह गिरफ्तार,
मशकूक कर दिया हालात ने किरदार,
झूटी दफा के दावे मिरे नाम लिख दिए,
उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.
लिखूं अगर ग़ज़ल तो वो जान-ए-ग़ज़ल है,
अलफ़ाज़-ओ-एहसास मे उसका ही दखल…
ContinueAdded by इमरान खान on June 15, 2011 at 6:44pm — 2 Comments
पंछी ए ख्वाब के पर काट के सारे तुमने,
कर दिये फौत ये अरमान हमारे तुमने।
बेकरारी में ये मदहोश मेरी धड़कन है,
अपना साथी तो फकत टूटा हुआ दरपन है,
बेसदा मेरा तराना हुये अल्फाज भी गुम,…
Continueतेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,
गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.
क़त्ल कर.. दफना गया है तू जिसको,
हाथो मे वोही प्यार लिए बैठे हैं.
जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,
हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.
दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,
सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.
पत्थर का, मुझे देखके दिल भर आया,
आँखों मैं वोह. गुबार लिए बैठे हैं,
'उफ़' नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,
सदा-ए-दिल…
ContinueAdded by इमरान खान on June 11, 2011 at 8:00pm — 5 Comments
ये रचना मैंने लिखी तो महा उत्सव अंक 8 के लिए थी ... १० जून की रात को पोस्ट भी की लेकिन
शायद मैंने ही लेट हो गया जो सम्मिलित नहीं हो पायी कोई बात यहीं.. ऐसे ही पोस्ट कर देता हूँ...
ये गीत मुझे ही गुनगुनाने नहीं आते,
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते
प्यारी ज़मी को मैंने सींचा था खून से,
हर एक बीज बोया था मैंने जूनून से
इक रोज़ भी न मैं तो आराम कर सका,
इक रात भी न मैं तो सोया सुकून से
अपनाऊँ हर शख्स…
(अदबी महफ़िल की अज़ीम शख्सियात को मेरा आदाब ! मैं बस ऐसे ही किसी को ढूंढते हुए यहाँ चला आया !वो मुझे मिल गया .. लेकिन साथ ही जादूयी जगह भी मिली ! मुझ जैसे शख्स, जो बहुत कुछ लिखना चाहता है सुनना चाहता है ! न तो मुझ पर कुछ कहना आता है न ही साथ निभाना, जब ओपन बुक ज्वाइन कर ही ली है तो सोचा.. अपनी तुकबंदी भी यहाँ पर जोड़ता चलूँ ! गुज़ारिश है सभी से के कुछ तनक़ीद ज़रूर करैं ... तरीफ के लायक तो मेरे अलफ़ाज़ हैं नहीं…
ContinueAdded by इमरान खान on June 10, 2011 at 6:30pm — No Comments
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