काम से थककर चूर पत्नी ने कमर पीड़ा से कराहते हुए दर्द भरे स्वर में कहा - ‘हाय रा s sम !’
बिस्तर पर लेटे –लेटे पति ने पत्नी की व्यथा सुनी, बुरा सा मुंह बनाया और जोर से आह भरी – ‘हाय सी s sता !'
[अप्रकाशित व् मौलिक]
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 4:00pm — 37 Comments
प्रोषितपतिका मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i' इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 29, 2014 at 1:08pm — 24 Comments
याद की छाई घटाये चाँद उनमे खो गया I
रोते-रोते थक गया तो नील नभ पर सो गया I
ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार का छाया नशा
स्वप्न के टूटे किनारे चांदनी में धो गया I
पर्वतो के श्रृंग पर है शाश्वत हिम का मुकुट
मौन के सम्राट का भी ह्रदय प्रस्तर हो गया I
देखकर इस देह के पावन मरुस्थल का धुआं
एक सहृदय रेत में कुछ आंसुओ को बो गया I
कल्पना के कलश में करुणा अभी 'गोपाल'…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2014 at 9:00pm — 43 Comments
आपगा सरस्वती
मंत्र है प्रमाण इस भारत मही में कभी
वाणी की प्रतीक देवि आपगा यशस्विनी I
बहती थी मंद -मंद सींचती थी छंद -छंद
बोलती थी कल , कल -कंठ से मनस्विनी I
स्नान करते थे आर्य, पान करते थे वारि
ध्यान धरती थी यह धारिणी तपस्विनी I
आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह
ज्ञान बीज बोती, मेरी मातः पयस्विनी I
(मौलिक और अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 21, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
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