मौन पर त्वरित क्षणिकाएं :
मौन तो
क्षरण है
शोर का
............
मन का
कोलाहल है
मौन
.............
मौन
स्वीकार है
समर्पण का
...............
मौन
प्रतिशोध का
शोर है
..............
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 26, 2019 at 8:12pm — 6 Comments
शब्द ....
शब्द
बतियाते हैं तो
सृजन बन जाते हैं
शब्द
बतियाते हैं तो
वाचाल हो उठती है
अंतस भावों की
पाषाण प्रतिमा
शब्द
बतियाते हैं तो
बन जाते हैं
कालजयी
शिलालेख
शब्द
बतियाते हैं तो
छीन लेते हैं
मौन में दबे दर्द की
मौनता को
इसीलिए
शब्दों का बतियाना
बड़ा अच्छा लगता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 23, 2019 at 5:02pm — 2 Comments
ख़्वाब ... (क्षणिका )
तैरता रहा तुम्हारा अक्स
मेरे ख़्वाबों के प्याले में
माहताब बनकर
मैं निहारता रहा
अब्र में
बिखरता ख़्वाब
छलिया माहताब में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 22, 2019 at 4:58pm — 6 Comments
कर्म आधारित दोहे :
अपने अपने नीड़ की, अपनी अपनी पीर।
हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।।
पाप पुण्य संसार में, हैं कर्मों के भोग।
सुख-दुख पाना जीव का ,मात्र नहीं संयोग।।
हर किसी के कर्म का, दाता रखे हिसाब।
देना होगा ईश को ,हर कर्म का जवाब।।
चाँदी सोना धन सभी, हैं जग में बेकार।
सद कर्मों से जीव का, होता बेड़ा पार।।
जग में आया छोड़कर, जब तू अपना धाम।
धन अर्जन के कर्म में, भूल गया तू…
Added by Sushil Sarna on June 20, 2019 at 2:33pm — 10 Comments
ताप संताप दोहे :
सूरज अपने ताप का, देख जरा संताप।
हरियाली को दे दिया, जैसे तूने शाप।।
भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज।
वसुधा की काया फटी,ठूंठ बने सरताज।।
वसुंधरा का हो गया, देखो कैसा रूप।
हरियाली को खा गई, भानु तेरी धूप।।
मेघो अपने रहम की, जरा करो बरसात।
अपनी बूंदों से हरो, धरती का संताप।।
तृषित धरा को दीजिये, इंद्रदेव वरदान।
हलधर लौटे खेत में, खूब उगाये धान।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 19, 2019 at 7:04pm — 8 Comments
औरत.....
जाने
कितने चेहरे रखती है
मुस्कराहट
थक गई है
दर्द के पैबंद सीते सीते
ज़िंदगी
हर रात
कोई मुझे
आसमाँ बना देता है
हर सह्र
मैं पाताल से गहरे अंधेरों में
धकेल दी जाती हूँ
उफ़्फ़ ! कितनी बेअदबी होती है
मेरे जिस्म के…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2019 at 1:07pm — 1 Comment
गर्मी पर 5 दोहे ....
लू में हर जन भोगता, अनचाहा संताप।
दुश्मन मेघों का बना,भानु किरण का ताप।।
मेघों से धरती कहे, कब बरसोगे तात।
प्यासी वसुधा मांगती, थोड़ी सी बरसात।।
जंगल सारे कट गए, कैसे हो बरसात।
तपती धरती पर लिखी, पर्यावरणी बात।।
धरती पर हर ताप का, भानु ताप सरताज।
गौर वर्ण पर हो गया, स्वेद कणों का राज।।
भानु अनल से तप रहे, धरती अंबर आज।
प्यासा जीवन हो गया, बारिश का मुहताज…
Added by Sushil Sarna on June 6, 2019 at 7:00pm — 5 Comments
ईद ...
दीद आपकी ईद पर, है अनुपम सौगात।
ईद मुबारक कर गई , आज ईद की रात ।।
मेघों की चिलमन हटी, हुई चाँद की दीद।
भेद-भाव सब भूलकर, कहें मुबारक ईद।।
दीद आपकी दे गई, ईदी हमको आज।
धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज ।।
अर्श पर्श पर आज है, ईद मिलन का राज ।
ईद मुबारक सब कहें , इक दूजे को आज ।।
तरस रही हैं दीद को,कब आएगी ईद।
आएगी जब ईद, तो कैसे होगी दीद।।
बिना आपके बे-मज़ा,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 5, 2019 at 3:30pm — 3 Comments
ज़िंदगी ... तीन क्षणिकाएँ
मरती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
अमर हो गई
फ्रेम में
कैद होने के बाद
..........................
जीती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
मर गई
फ्रेम में
कैद होने से पहले
..........................
वाकिफ़ थी
अपने हश्र से
ज़िंदगी
फिर भी
मिट न सकी
जीने की लालसा
अवसान से पहले
.....................
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 2, 2019 at 9:24pm — 4 Comments
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