2121 222 2121 222
मानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं।
रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं।
छा गया है बागों में, सुर्ख रंग कलियों पर,
तितलियों के भँवरों से, हो रहे इशारे हैं।
सौंधी-सौंधी माटी में, रंग है उमंगों का,
तर हुए किसानों के, खेत-खेत प्यारे हैं।
मेघों ने बिछाया है, श्याम रंग का आँचल,
रात हर अमावस है, सो गए सितारे हैं।
सब्ज़ रंगी सावन ने, सींच दिया है…
Added by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 9:30am — 10 Comments
अपने बच्चों को सिंकते हुए भुट्टे और बिकते हुए जामुनों को ललचाई नज़रों से देखते हुए वो मन मसोस कर रह जाती थी। आज उसे तनख़्वाह मिली थी, उसके हाथों में पोटली देख कोने में खेलते हुए दोनों बच्चे खिलौने छोड़ दौड़ पड़े। तभी बीड़ी पीते हुए पति ने उससे कहा-“ला पैसे, बहुत दिनों से गला तर नहीं हुआ”... “लेकिन आज मैं बच्चों के लिए...” “तड़ाक!..." "तो तू मेरे खर्च में कटौती करेगी?” पोटली जमीन पर गिरी, जामुन और भुट्टे मैली ज़मीन सूँघने लगे और... माँ पर पड़े थप्पड़ से सहमे हुए बच्चे अपना गाल सहलाते हुए पुनः अपने…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on July 2, 2014 at 1:00pm — 17 Comments
कल हुआ जो वाक़या, अच्छा लगा।
हाथ तेरा थामना अच्छा लगा।
जिस्म तो काँपा जो तूने प्यार से,
कुछ हथेली पर लिखा, अच्छा लगा।
देखकर मशगूल हमको इस कदर,
चाँद का मुँह फेरना अच्छा लगा।
घाट रेतीले जलधि के नम हुए,
मछलियों का तैरना अच्छा लगा।
आसमाँ में बिजलियों की कौंध में,
बादलों का काफिला अच्छा लगा।
नाम ले तूने पुकारा जब मुझे,
वादियों में गूँजना अच्छा लगा।
बर्फ में लिपटे…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on July 2, 2014 at 11:00am — 17 Comments
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