बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,
जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,
तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,
पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,
झड़ी नैनों…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:00pm — 17 Comments
दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:00pm — 22 Comments
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