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कवि - राज बुन्दॆली's Blog – July 2013 Archive (3)

कब तक

कब तक =

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इस जीवन कॆ नख़रॆ, नाँज़ उठाऊँ कब तक ॥

नागफ़नी कॊ सीनॆ, सॆ चिपकाऊँ कब तक ॥१॥



कुछ कठिन सवालॊं कॆ, उत्तर खॊज रहा हूँ,

मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥



राम बचा लॊ मुझकॊ, इस झूँठी  दुनिया सॆ,

सबकी हाँ मॆं हाँ मैं, और मिलाऊँ कब तक ॥३॥



पागल समझ रही है, दुनिया सच ही हॊगा,

पागल बनकर मैं यॆ, रॊग छुपाऊँ कब तक ॥४॥



पागल बन कर मैनॆं, खूब सुनीं हैं गाली,

राग पुराना बॊलॊ, मैं दुहराऊँ कब तक…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 10, 2013 at 3:30pm — 6 Comments

*** कुण्डलिया छन्द ***

*** कुण्डलिया छन्द ***

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सच्चाई कॊ प्रॆम सॆ, कर लॊ तुम स्वीकार !

सदा दम्भ कॆ शीश पर, करतॆ रहॊ प्रहार !!

करतॆ रहॊ प्रहार, पनपनॆ कभी न पायॆ !

सुन्दर सहज विचार, सभी वॆदॊं नॆं गायॆ !!

कहॆं "राज"कविराज,करॊ जग मॆं अच्छाई !

नाम अमर हॊ जाय, निभायॆ जॊ सच्चाई !!१!!



ताना मारॆ तान कर, निन्दक मिलॆ पुनीत !

जीत गयॆ तॊ जीत है, हार गयॆ भी जीत !!

हार गयॆ भी जीत, भला अपना ही हॊता !

बिन साबुन औ नीर, चरित्र यही है धॊता !!

कहॆं… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 6, 2013 at 6:19pm — 14 Comments

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,

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सच ! तू ही अब सब कुछ बतला,मैं क्यॊं ्न तुझसॆ प्यार करूँ ॥



तॆरी कटुता कॊ जग मॆं, कॊई शमन नहीं कर पाता,

तॆरी ग्रीवा मॆं बाहॆं डाल, कॊई भ्रमण नहीं कर पाता,

भाग रहा जग दूर दूर, क्यॊं तुझसॆ कुछ तॊ बतला,

दुविधा का विषय यही, है जग बदला या तू बदला,



दुत्कार रहा सारा जग तुझकॊ,मैं क्यॊं न जग सॆ ्तक़रार करूँ ॥१॥

सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



फिर तॆरॆ हॊतॆ जग मॆं, कैसॆ असत्य का राज्य…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2013 at 9:00pm — 18 Comments

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