मुरली तो मन मोहनी, हरे जगत की पीर.
उसे चुरा कर राधिका, स्वयं हुई गम्भीर.
मुरली हर मन मोहती, लिये फकीरी रूप.
सरस कण्ठ निष्काम रख,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
मत्तगयन्द सवैया. (सात भगण और दो गुरु )
1.
वक्त बली अति सौम्य तुला रख नीति- सुप्रीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी - विधना सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला नित शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे पर, मानव सत्य नहीं गहता है.
2.
स्नेह मुहब्बत संग दया समता, करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन में, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
अजनबी लाशें..
पाठशाला में पढाती
आँंखें खोल कर,
सृ-िष्ट की सबसे सुन्दर कृति
नारी का हृदयंगम पाठ
अक्षर-अक्षर निर्वस्त्र, लिजलिजा भाव
भाषा नि:शब्द!
पर, संवेदना के पहाड़े याद नहीं होते।…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2015 at 7:30pm — 4 Comments
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