हिसाब ना माँगा कभी
अपने गम का उनसे
पर हर बात का मेरी वो
मुझसे हिसाब माँगते रहे ।
जिन्दगी की उलझनें थीं
पता नही कम थी या ज्यादा
लिखती रही मैं उन्हें और वो
मुझसे किताब माँगते रहे ।
काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।
कुछ सवाल अधूरे रह गये
जो मिल ना सके कभी
मैंने आज भी ढूंढे और वो
मुझसे जवाब माँगते…
ContinueAdded by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:39pm — 18 Comments
रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो
दोनों भिगो जाती हैं ।
- दीप्ति शर्मा
Added by deepti sharma on July 8, 2012 at 8:30pm — 31 Comments
वेदना संवेदना अपाटव कपट
को त्याग बढ़ चली हूँ मैं
हर तिमिर की आहटों का पथ
बदल अब ना रुकी हूँ मैं
साथ दो न प्राण लो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
निश्चल हृदय की वेदना को
छुपते हुए क्यों ले चली मैं
प्राण ये चंचल अलौकिक
सोचते तुझको प्रतिदिन
आह विरह का त्यजन कर
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण…
Added by deepti sharma on July 5, 2012 at 1:00am — 49 Comments
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