सरकारी अनुदान - ( लघुकथा ) -
"अरी ओ कुसुमा, अभी तू इधर ही खड़ी है! जल्दी से फारिग होकर आजा! देख सूरज निकल आया है"!
"वही तो सोच रही हूं अम्मा, किधर जायें,चारों तरफ़ तो खेत खलिहान में आदमी लोग दिख रहे हैं"!
"इसलिये तो कहते हैं बिटिया कि अंधियारे में ही हो आया करो"!
"अम्मा, तुम तो खुद ही देख चुकी हो कि पिछले महीने दो लड़कियों को जंगली जानवर उठा ले गये"!
"अरे बिटिया, गाँव देहात में यह सब कहानी किस्से तो चलते ही रहते हैं!कौन जाने सच क्या है"!
"पर अम्मा, तुम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 31, 2016 at 10:46am — 12 Comments
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