2122 1122 1122 22
बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है
खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है
मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है
वो हसीं वक़्त जो मिल करके गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है
वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है
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मौलिक अप्रकाशित
Added by SALIM RAZA REWA on July 29, 2019 at 9:30pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी
फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी
.
अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब
करम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी
.
जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू
वहां पे छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी
.
बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का
कहीं पेड़ों पे भी मिलता नहीं वो आशियाना भी
.
हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से
हमारे साथ…
Added by SALIM RAZA REWA on July 23, 2019 at 9:30pm — 1 Comment
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