सावन के दोहे :.........
गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।
सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।
अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।
तन पर सावन की करे, वृृष्टि मधुर शृंगार ।।
सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।
मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।
अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।
इन्कारों…
Added by Sushil Sarna on July 28, 2021 at 3:30pm — 6 Comments
प्रश्न ......
प्रश्न प्रश्न प्रश्न
स्वयं को तलाशते
सैंकड़ों प्रश्न
क्या मैं
सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की
काल धूल के आवरण से लिपटी
कोई खंडित प्रतिमा हूँ
या फिर
किसी हवन कुंड में
किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए
झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ
या फिर
विषधरों के दंश झेलता
कोई चंदन का विटप हूँ
या फिर
काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता
धीरे-धीरे विघटित होता
शिला खंड…
Added by Sushil Sarna on July 26, 2021 at 12:54pm — 6 Comments
फ़र्ज़ ......
निभा दिया फ़र्ज़
संतान ने
भेजकर माँ - बाप को
वृद्धाश्रम
........................
आजकल फ़र्ज़ भी
निभाए जाते हैं
कर्ज़ की तरह
.........................
गुजर गए
गुजरना था उनको
जिन्दगी की आखिरी पायदान से
बदल कर
पुरानी नेम प्लेट अपने नाम से
निभा दिया फ़र्ज़
अपने वारिस होने का
सुशील सरना / 23-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2021 at 5:37pm — 2 Comments
अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।
नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।
थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।
सुशील सरना / 20-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments
अभिव्यक्ति ......
कैसे व्यक्त करूँ
अपने प्रेम की गहराई को
अभिव्यक्ति के अवगुंठन में
एक खीज है
तुम्हें छूने की
अबोले स्पर्शों से
कब तक लड़ूँ मैं
तुम ही कहो न
अपने प्रेम की गहराई को
कैसे व्यक्त करूँ मैं
हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी
भोर की उजास में
साँझ की प्यास में
तृप्ति की आस में
हर हलाहल पी जाऊँगी
मर के भी जी जाऊँगी
बस मेरी तन्हाई में
कुछ देर और जी जाओ
तुम ही कहो
तुम्हारे प्यार में आखिर…
Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments
सुलगते अँधेरे .......
न जाने आज
मन इतना उदास क्यों है
लगता है
स्मृतियों की सीलन से
मन की दीवारें
भुरभुरा सी गई हैं
यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब
जैसे गिरती दीवारों पर
मन की बेबसी पर
अट्टहास लगा लगा रहे हों
कितनी ढीठ है
ये बरसाती हवा
जानती है मेरी आकुलता को
फिर भी मुझे छू कर
मुझसे मेरा हाल पूछती है
अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे
आहटें
मन के वातायन पर गूँजती…
Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
मन का साहिल ......
जाने कब मेरे अन्तस में
भावनाओं का सागर उफान मारने लगा
भावों की वीचियों पर
चाहत की कश्ती
अठखेलियां करने लगी
दिल के किसी कोने में
एक चाहत उभरी
कि मैं हौले से छू लूँ
फिर वही
अधर दलों पर ठहरी
उल्फ़त की गंध
चुपके से
डूब जाऊँ
किसी मदहोश भंवरे की तरह
पुष्प आगोश में
पराग का रसपान करते हुए
आकंठ तक
और मिल जाए
मेरी चाहत की कश्ती को
मेरे मन का…
Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments
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