२२१/२१२१/१२२१/२१२
शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर
बोलो करोगे आप क्या पत्थर उछाल कर।१।
*
जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया
लानत समय ने आज दी मुर्दा निकालकर।२।
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वो बिक गयी है वस्तु सी बेहाल भूख से
अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।
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केवल किसान जानता मौसम की मार को
हम ने तो देखा बीज न खेतों में डालकर।४।
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रोटी का मोल जानते बचपन से ही बहुत
माँ ने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते है लोग प्रीत की हमको समझ नहीं
दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।
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नफरत ही नित्य बँट रही सरकार इसलिए
आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।
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न्योतो न आप मंच से महफिल बिगाड़ने
कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।
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हम ने सदा ही धूप का रस्ता बुहारा पर
रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।
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समझा नहीं है खेल मुहब्बत को इसलिए
इस में ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments
२१२/२१२/२१२ /२२
जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी वो मानता कम है।१।
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मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ में भी तो देवता कम है।२।
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जो ठहरना नहीं चाहता साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
*
बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने ईमान को तौलता कम है।४।
*
पास बैठा है लेकिन अबोला ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
*
हर बुराई …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर
पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।
*
कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब
शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।
*
होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ
आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।
*
बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ
आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।
*
आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत
जब रात सर्दियों की सताती है रात…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
सेवा के नाम खाते हैं मेवा छिपा हुआ
इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।
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मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से
है रक्त बेबशों का भी इन में लगा हुआ।२।
*
मुकरे हैं नेता सारे ही देकर वचन हमें
करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ।३।
*
नेता हुए हैं आज के गिरगिट सरीखे सब
खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।
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ये नीरो जैसे देश में रहते हैं …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल
केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।
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मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर
किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।
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है जानकार जो भी वो पैसों के पीछे बस
जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।
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चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू
क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।
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पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है
कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल।५। …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कायराना काम कोई यार मत करवाइए
हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।
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शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर
गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।
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वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी
रोजमर्रा दुश्मनों से प्यार मत करवाइए।३।
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जाति धर्मों के लवादे में सियासत हेतु यूँ
नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।
*
चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments
कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
*
देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
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जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
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प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments
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