For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Shashi bansal goyal's Blog – July 2015 Archive (7)

चुभन ( लघुकथा )

" ये कैसा बकवास प्रोजेक्ट तैयार किया है । छोड़ो , तुमसे न होगा ।अब सुरेखा ही इस प्रोजेक्ट पर काम करेगी । " कहते हुए प्रोजेक्ट की ' हार्ड कॉपी 'अनीता के बॉस ने अपने पास रख ली ।
आज सुरेखा को उस प्रोजेक्ट को प्रजेंट करना था । प्रोजेक्टर पर प्रजेंटेशन चल रहा था , अनीता विस्मित हो मामूली हेर-फेर से अपने ही प्रोजेक्ट पर तालियों की चुभन महसूस कर रही थी ।सहसा उसकी नज़रें बॉस की ओर घूम गईं , जो शरारती अंदाज़ में कह रही थीं , " और झटको मेरा हाथ ।"

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 26, 2015 at 10:31pm — 8 Comments

जैसा बीज़ वैसी फ़सल ( लघुकथा )

"जानती है ? नया मेहमान आने वाला है सुनकर, माँ-बाबूजी कितने खुश हैं । "

"और आप ? "

" हाँ , माँ कह रही थीं , बड़ी भाभी की दोनों संतानें लड़कियाँ हैं, इसलिए बहू से कहना कि वह सिर्फ़ बेटा ही जने । "

"आपने क्या कहा ? '

"कहना क्या ? मैं माँ से अलग थोड़े हूँ , और तू भी माँ की इच्छा के विरूद्ध तो जाने से रही ।"

"सो तो है , पर माँ जी की इच्छा पूरी हो , उसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है । "

"मेरे हाथों में ? पागल हो गई है क्या ? '

"लो भई ! साइंस ग्रेजुएट हो । इतना भी नहीं…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 7:30pm — 19 Comments

फ़र्क ( लघुकथा )

"हम फलों से जरा लदे नहीं , हर राह चलता पत्थर फेंकना शुरू कर देता है । सिर्फ इसीलिए क्योंकि हम राह पर अनाथों के तरह फल-फूले हैं ।"

"हाँ भाई ! ठीक कहते हो । यदि  हम भी किसी बाग़ की शोभा होते तो नाज़ों से पलते , ठाठ से रहते । पत्थर की कोई छुअन हम तक नहीं पहुँच पाती ।"

"अजीब विडम्बना है , परवरिश गुलशन में मिले तो कीमत लाखों की , सरे राह क्या जन्मे ,आँख का कांटा हो गए ।"

"हूँ...। गोया कि बाग़ से इतर हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं । "

युवा पेड़ों के वार्तालाप को सुन पास खड़ा बूढ़ा वृक्ष बोल…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 21, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

गाँठ ( लघुकथा )

" नीरू ! क्या हमारे दाम्पत्य में इतनी दूरी आ गई है , कि अब तुम्हे तस्वीरों में भी मेरा साथ गवारा नहीं ? "

" हम साथ थे ही कब ? बस कोरा भ्रम था । "

" हमारे बच्चे ...? क्या इन्हें भी भ्रम कहोगी ? "

" नहीं ...। तब मुझे हमारे बीच तीसरे की उपस्थिति का भान नहीं था । "

" लौट भी तो आया हूँ , चाहो तो गाँठ बाँध के रख लो , ताकि फिर कभी ...।"

" गाँठ तो तब भी बाँधी गई थी न , जब हमने सप्तपदी ली थी ? "

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 18, 2015 at 4:23pm — 3 Comments

प्रेयसी ( लघुकथा )

" ओफ्फो... ये बारिश भी न , एन दफ़्तर जाने के समय ही शुरू होती है ,पता नहीं क्या बैर है मुझसे । आज इतनी जरूरी मीटिंग है कि , अवकाश भी नहीं ले सकती ।" दीपा बड़बड़ाती बालकनी में खड़ी वर्षा रुकने की प्रतीक्षा करने लगी ।



तभी अंदर से लिखने में व्यस्त पति महोदय का आदेशात्मक स्वर कानों से टकराया , " दीपा ! समय है , तो एक प्याला चाय ही बना दो ।"



" जी ! बना देती हूँ ।" कह , मन ही मन बड़बड़ाते हुए रसोई में चली गई ।" बस जब देखो अपनी पड़ी रहती है , ये नहीं खुद गाड़ी से छोड़ आते । पर नहीं ।साहब… Continue

Added by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:29pm — 10 Comments

लाठी (लघुकथा )

" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

.
मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 11, 2015 at 5:00pm — 10 Comments

लेपटॉप ( लघुकथा )

" अम्मा , दद्दा , छुटके ! ई देखो , नए फिसनवा की पेटी । ऊ सहर की सड़क पे मिळत रही । "

" तनिक खोल तो मुनिया , कउनो गहना- जेबर भए तो दरोग़ा के बुलवाई के पड़ी ।"

" खोलत हैं अम्मा , ई का ? भीतर तो दर्पन चिपकत रही , वो भी ठुस्स भेसईंन रंगत ।"

" का कहत है ? फैंक अबहीं । जुरूर ई सुसरा सहर वाले कौनों जादू-टोना करके पटकत गईल ।"

" पर दद्दा , ई के भीतरे जो ढेर डिबियाँ जमत रहि , ऊ का , का ? "

" जिज्जी , तनक उहे बी तो .....का पता , कौनो गोली- बिस्किट ही धरें हों । "

" सैतान !…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 3, 2015 at 8:00pm — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service