२१२२ १२१२ २२
खामशी की जबान समझो ना
अनकही दास्तान समझो ना
सामने हैं मेरी खुली बाहें
तुम इन्हें आस्तान समझो ना
ये गुजारिश सही मुहब्बत की
तुम खुदा की कमान समझो ना
स्याह काजल बहा जो आँखों से
हैं वफ़ा के निशान समझो ना
बस गए हो मेरी इन आँखों में
इनमें अपना जहान समझो ना
झुक गया है तुम्हारे कदमों में
ये मेरा आसमान समझो…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 21, 2017 at 10:43am — 42 Comments
2122 1212 22
(१)
ये जो इंसान आज वाले हैं
कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं
रास्तों पर अलग अलग चलते
एक ही ये समाज वाले हैं
दस्तख़त से बनें मिटें रिश्तें
कागजी ये रिवाज वाले हैं
रावणों की मदद करें गुपचुप
लोग ये रामराज वाले हैं
रोज खबरों में हो रहे उरियाँ
ये बड़े लोकलाज वाले हैं
मुंह छुपाते विदेश में…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 9, 2017 at 1:05pm — 29 Comments
छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक)
विधान 32 वर्णों के चार समतुकांत चरण, 16 16 वर्णों यति अनिवार्य
8,8,8,8 पर यति उत्तम अंत में ललल अर्थात लघु लघु लघु या नगण अनिवार्य ।
सूखे कूप हैं इधर ,गंदे स्रोत हैं उधर,प्यासे वक़्त के अधर,मीठा नीर है किधर|
मैली गंग है उधर,देखें नेत्र ये जिधर,रोयें धरा ये अधर,जाए शीघ्र ये सुधर|
कोई भाव है न रस,कैसे शुष्क हैं उरस,वाणी नहीं है सरस,शोले रहे हैं बरस|
बातों बात ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 1, 2017 at 10:44pm — 4 Comments
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