221 2121 1221 212
नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ
गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें
लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ
धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से
मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ
कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम
ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ
कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही
सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 9:00am — 29 Comments
2122 1212 22 /122
मंज़रे ख़्वाब से निकल जायें
अब हक़ीकत से ही बहल जायें
ज़ख़्म को खोद कुछ बड़ा कीजे
ता कि कुछ कैमरे दहल जायें
तख़्त की सीढ़ियाँ नई हैं अब
कोई कह दे उन्हें, सँभल जायें
मेरे अन्दर का बच्चा कहता है
चल न झूठे सही, फिसल जायें
शह’र की भीड़ भाड़ से बचते
आ ! किसी गाँव तक निकल जायें
दूर है गर समर ज़रा तुमसे
थोड़ा पंजों के बल उछल जायें
चाहत ए रोशनी में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 23, 2017 at 8:11pm — 37 Comments
2122 1212 112/22
गर अँधेरा है तेरी महफिल में
हसरत ए रोशनी तो रख दिल में
खुद से बेहतर वो कैसे समझेगा ?
सारे झूठे हैं चश्म ए बातिल में
क़त्ल करने की ख़्वाहिशों के सिवा
और क्या ढूँढते हो क़ातिल में
बेबसी, दर्द और कुछ तड़पन
क्या ये काफी नहीं था बिस्मिल में ?
फ़िक्र क्या ? बाहरी जिया न मिले
रोशनी है अगर तेरे दिल में
कोई तो कोशिश ए नजात भी हो
अश्क़ बारी के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 10, 2017 at 8:30am — 30 Comments
2122 2122 212
दूध में खट्टा गिरा लगता तो है
काम साज़िश से हुआ,लगता तो है
था हमेशा दर्द जीवन में, मगर
दे कोई अपना, बुरा, लगता तो है
बज़्म में सबको ही खुश करने की ज़िद
आदमी वो सरफिरा, लगता तो है
सच न हो, पर गुफ़्तगू हो बन्द जब,
बढ़ गया कुछ फासिला, लगता तो है
गर मुख़ालिफ हो कोई जुम्ला, मेरे
दोस्त अब दुश्मन हुआ, लगता तो है
ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था
मौत से वह भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 8:30am — 23 Comments
2122 1212 22/112
अब यहाँ पर विगत हुआ जाये
या, जहाँ से विरत हुआ जाये
खूब दीवार बन जिये यारो
चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये
कोई खोले तो बस खला पाये
प्याज़ की सी परत हुआ जाये
ताब रख कर भी सर उठाने की
क्यों भला दंड वत हुआ जाये
आग, पानी , हवा की ले फित्रत
हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये
खूबी ए आइना बचाने को
क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 6:00pm — 24 Comments
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