काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 9:07am — 26 Comments
दुमहले के ऊँचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट
मखमली अंगों में समेट
कर देती निहाल
स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती
घुल जाता मेरा अस्तित्व
पानी में रंग की तरह
अम्बर के अलगनी पर
टांग दिए हैं वक्त ने काले मेघ
चन्द्रमा आवृत है , ज्योत्सना बाधित
अस्निग्ध हाड़ जल रहा
सीली लकड़ियों की तरह
स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं
सुखद स्मृतियाँ.....
.. नीरज कुमार…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 24, 2013 at 3:30pm — 23 Comments
कौन हो तुम ?
जन गण मन के अधिनायक.
कहाँ रहते हो ?
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ.
बरसों से हूँ मैं तुम्हारी खोज में,
तुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी,
ईश्वर की तरह .
कौन हो तुम ?
तुम भारत भूमि तो नहीं ,
भारत तो माता है,
माता कभी अधिनायक तो नहीं होती .
तुम हो भारत भाग्य विधाता .
फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य.
भारत के भाग्य का ऐसा क्यों लिखा विधान.
कैसे विधाता हो ?
तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 14, 2013 at 9:11pm — 13 Comments
सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,
इस कोने से उस कोने तक ताकि
प्रकाश फैले कोने कोने में.
लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.
प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.
लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं
मांगना उन्हें वर्जित है
घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम
उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं
उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके
निरंतर, निर्बाध.
डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .
उनके आँखों पर लगी होती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments
शरीफों में शराफत नहीं
सिंह बकरी सा मिमियाए.
देख के, भारत माता का
आंचल भी शर्माए.
**********
दुष्ट कब समझा है जग में
निश्छल प्रेम की परिभाषा.
अपनी ही लाशों पर लिखोगे
क्या देश की अभिलाषा.
लाल पत्थर की दीवारें भी
महफूज़ नहीं रख पाएंगी .
सीमा पर बही रक्त जब
दिल्ली तक तीर आएगी .
सत्ता सुख क्षणिक है
सदैव नहीं रह पायेगा.
दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर
जब फिर से नादिर…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 9, 2013 at 11:30am — 14 Comments
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